90 दिनों में तैयार होगी फसल, प्रति हेक्टेयर 8 क्विंटल तक उत्पादन; औषधीय और खाद्य तेल के बाजार में बढ़ी मांग
तिल एक ऐसी महत्वपूर्ण फसल है जो बहुत कम समय में तैयार होकर किसानों को बेहतर आर्थिक रिटर्न दे सकती है। कम अवधि की फसल होने के कारण इसे एकल, अंतरफसल या मिश्रित खेती के रूप में आसानी से लिया जा सकता है। तिल के बीजों में 45 से 50% तक तेल की मात्रा होती है, जिसका उपयोग न केवल खाद्य तेल के रूप में, बल्कि औषधि, साबुन और पारंपरिक व्यंजनों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। ग्रीष्मकालीन मौसम तिल की खेती के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है।
अनुकूल जलवायु और मिट्टी का चुनाव
तिल की खेती के लिए सही तापमान का होना अनिवार्य है। अच्छे अंकुरण के लिए कम से कम 15°C तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि फसल की बढ़वार और फलियां लगने के लिए 21 से 32°C का तापमान आदर्श माना जाता है। अच्छी जल निकासी वाली किसी भी मिट्टी में इसकी खेती संभव है, लेकिन बुवाई से पहले मिट्टी को कल्टीवेटर की मदद से अच्छी तरह भुरभुरा बनाना जरूरी है ताकि बारीक बीजों का अंकुरण सही ढंग से हो सके। खेत तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाना उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है।
बुवाई का सही समय और बीज उपचार
ग्रीष्मकालीन तिल की बुवाई फरवरी के पहले पखवाड़े (15 फरवरी) तक हर हाल में पूरी कर लेनी चाहिए। बुवाई में देरी होने पर मानसून पूर्व की बारिश फसल को नुकसान पहुँचा सकती है।
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बीज की मात्रा: एक हेक्टेयर के लिए 4 किलो बीज पर्याप्त है।
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बुवाई की विधि: बीज बारीक होने के कारण इसमें रेत या राख मिलाकर 30 सेमी की दूरी पर बुवाई करें। ध्यान रहे कि बीज 1 इंच से ज्यादा गहरा न जाए।
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बीज उपचार: मिट्टी से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए 3 ग्राम कार्बेंडाजिम और 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
उन्नत किस्में और उर्वरक प्रबंधन
विशेषज्ञों ने ग्रीष्मकालीन खेती के लिए एकेटी-101 और एनटी-11-91 जैसी किस्मों की सिफारिश की है, जो 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। खाद प्रबंधन के लिए मिट्टी परीक्षण के आधार पर 50 किलो नाइट्रोजन और 25 किलो फास्फोरस का प्रयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और आधी मात्रा 21 से 30 दिनों के बाद दें। इसके अलावा, बेहतर गुणवत्ता के लिए प्रति हेक्टेयर 20 किलो सल्फर और जिंक का उपयोग करना लाभदायक रहता है।
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
तिल हालांकि सूखे के प्रति सहनशील है, लेकिन गर्मियों में मिट्टी की नमी के अनुसार 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई आवश्यक है। विशेषकर फूल आने और फलियां बनने के समय पानी का तनाव बिल्कुल न होने दें। बुवाई के 15-20 दिनों बाद पौधों का विरलीकरण (Thinning) करें ताकि दो पौधों के बीच 10-15 सेमी की दूरी बनी रहे। फसल के पहले एक महीने तक नियमित निराई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखें। इन वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर किसान भाई तिल की खेती से बम्पर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।